जयप्रकाश वर्मा (करमा ककराही) सोनभद्र
सोनभद्र। पितृ विसर्जन अमावस्या हिंदुओं का धार्मिक कार्यक्रम है जिसे प्रत्येक घर में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन हिंदुओं में अपने पूर्वजों जिन्हें पितर कहते हैं की मृत्यु के पश्चात् उनके उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। सनातन धर्म में अपने से बड़ों के प्रति आदर व श्रद्धा का भाव रखा जाता है।
आयोजन की तिथि-:
यह पर्व आश्विन मास की अमावस्या को मनाया जाता है जिसे हम पितृविसर्जन, सर्वपैत्री अमावस्या या महालया समाप्ति भी कहते हैं।
महत्व-:
पुराणों में बताया गया है कि जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध व तर्पण प्रेम से करता है पितृगण उसके कल्याण की कामना करते हुए आशीर्वाद देते हैं।
पितृ विसर्जन के दिन धरती पर आए हुए पितरों की विदाई की जाती है। आचार्य गोविन्द प्रसाद पाण्डेय “ध्रुव जी” के अनुसार अगर पूरे पितृ पक्ष में पितरों को याद न किया गया हो तो अमावस्या को उन्हें याद करके श्राद्ध, तर्पण, भोजन, दान करने से पितरों को शांति मिलती है। अमावस्या को जन्म लेने वाले पूर्वजों का श्राद्ध या तर्पण किया जाता है।
जिनकी मृत्यु तिथि अज्ञात हो, या तिथि ज्ञात होने पर किसी कारण से श्राद्ध न हो पाए या जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो अथवा
नाना, नानी का भी श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।
पौराणिक तथ्यों के अनुसार आत्मा का धरती से लेकर परमात्मा तक पहुंचने का सफर वर्णित हैं। लेकिन धरती पर रहकर पूर्वजों को प्रसन्न कैसे किए जाए? इसका आसान सा जबाव यही है कि आपके वरिष्ठ परिजन जब धरती पर जिंदा हैं उन्हें सम्मान दें, उनको किसी तरह से दुःखी न करें। क्योंकि माता-पिता, दादा-दादी, आपके बुजुर्ग जब तक जिंदा हैं और प्रसन्न हैं तो मरने के बाद भी वह आपसे प्रसन्न ही रहेंगे। आधुनिक दौर में माता-पिता, दादा-दादी ,नाना- नानी या अन्य वरिष्ठजनों को लोग यातनाएं देते हैं उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं यह पूरी तरह से गलत है और इनके मरने के बाद उनका तर्पण करते हैं, ऐसे में वह आपसे प्रसन्न कैसे रह सकते हैं।
श्राद्ध स्थान :
पितृ विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध पर्व किसी नदी या सरोवर के तट पर या अपने घर(गौशाला) में भी हो सकता है।