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सोनभद्र कार्यालय/7007307485

● क्रांति की पुकार थे रामधारी सिंह ‘दिनकर’

● सोनसाहित्य संगम ‘ के बैनर तले हुई गोष्ठी

सोनभद्र। बिहार के बेगूसराय जिले के छोटे से गाँव सिमरिया में 23 सितंबर 1908 को साधरण से परिवार में जन्में रामधारी सिंह साहित्य के आकाश के दिनकर बन जाएंगे यह किसने सोचा रहा होगा। यह भी अनुमान पिता
बाबू रवि सिंह और माता मनरूप देवी को नही रहा होगा कि राष्ट्रकवि बनकर उनका लाल 1959 में पद्मभूषण से सम्मानित भी होगा। ज्ञानपीठ और साहित्य
अकादमी पुरस्कार प्राप्त दिनकर जी भूषण के बाद वीररस के प्रमुख कवि थे। यह विचार सोनसाहित्य संगम के निदेशक वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए बुधवार को व्यक्त किए ।

● सोनसाहित्य संगम के रॉबर्ट्सगंज स्थित कार्यालय में
आयोजित दिनकर जी की 112 वी जयंती पर गोष्ठी में उपनिदेशक सुशील राही ने कहा , एक ओर उनकी कविताओं में ओज ,विद्रोह , आक्रोश और क्रांति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की
अभिव्यक्ति है । इसी बात को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत पूर्व प्रधानाध्यपक साहित्यकार ओमप्रकाश त्रिपाठी ने कहा , दिनकर जी छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे । पराधीनता काल में एक ‘ विद्रोही ‘ तो स्वतंत्र भारत में ‘ राष्ट्रकवि ‘ के रूप में स्थापित हो गए । वे गद्य और पद्य दोनों में दक्ष साहित्यकार थे। सोनसाहित्य संगम के संयोजक और टैक्स बार एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष कवि राकेश शरण मिश्र एडवोकेट ने कहा , उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए गीत गाए तो शोषण और अन्याय के
ख़िलाफ़ भी कविताओं की रचना किए।

● शिक्षक और पत्रकार भोलानाथ मिश्र ने कहा , एक प्रगतिवादी और मानवतावादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजश्वी व प्रखर शब्दों का ताना बाना बना दिया। उर्वशी को छोड़ कर दिनकर की अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत हैं ।

● विंन्ध्य सँस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट के निदेशक पत्रकार दीपक कुमार केसरवानी ने कहा कि आपात काल के पूर्व पटना के गांधी मैदान में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने जन सभा मे दिनकर जी की रचना से समग्र क्रांति का बिगुल फूंका था, समय के रथ का घर्घर
नाद सुनो, सिंहासन खाली करो की जनता आती है। 1975 फिर आपात काल लगा तो दिनकर की यह पंक्ति आंदोलन कारियो की जुबान पर चढ़ गया।

● कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुई। वाणी वंदना मेघ विजयगढ़ी ने की। इस अवसर पर कवि सरोज सिंह , शिवनरायन शिव, डा. परमेश्वरदयाल श्रीवास्तव, ईश्वर विरागी समेत अनेक रचनाकारों ने दिनकर जी को याद करते हुए अपनी अपनी रचनाओं से उनकी जयंती पर उनके कृत्तित्व व्यक्तित्व को रेखांकित किया। गोष्ठी का सफल संचालन और अभ्यागतों की आवभगत सोनसाहित्य संगम के संयोजक राकेश शरण मिश्र ने की।