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● नीरज जी की पुण्यतिथि पर विशेष

सोनभद्र। नीरज जी स्वयं गीत थे ऐसा लगता था कि वो नहीं गीत उन्हें रचते थे। गीत को पढ़ने के साथ साथ उसमे खो जाने की आदत ने नीरज जी को योगधर्मी सा बना दिया था। यह बातें सोनांचल की लोकप्रिय गीतकार रचना तिवारी ने उस वक्त कहीं जब उनसे इस संवाददाता ने गीत ऋषि डॉक्टर गोपाल दास नीरज जी की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर रविवार को नीरज जी के कुछ संस्मरण जानने की इच्छा व्यक्त की। रचना जी ने नीरज जी की स्मृतियों में पूरी तरह सर शब्ज होकर कहा कि अनंत विस्तार उनकी पुण्यतिथि मना कर नहीं परिभाषित किया जा सकता है। आगे कहा आज का दिन हम जैसे गीतकारों के लिए लोगों तक उनकी यादें ताजा करने का दिन है। और आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि नीरज जी जैसा कालजई गीतकार जिसके आगे पीछे भाग्य के सारे नक्षत्र फेरे लगाते नजर आते थे पुनः पैदा होना आसान नहीं है।
डॉक्टर रचना तिवारी की माने तो वाकई मंजू पर विरोधी के साथ रहे और उनके गीतों पर उनका आशीर्वाद भी मिला। एटा में रंग महोत्सव के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के मंच पर नीरज जी अध्यक्षता कर रहे थे उन्होंने संचालक से मुझे पढ़ाने के लिए कहा और जैसे ही मैं पढ़ कर बैठे उन्होंने खुद पढ़ने का फरमान जारी कर दिया। समापन के बाद उन्होंने कहा नचना गीत ही लिखना अन्य कवियत्रियों की तरफ भटकना मत। एक और संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मेरे प्रथम गीत संग्रह पर अपना आशीर्वाद मुझे खुद से कह कर दिया था। अंत में कहा कि नीरज जी ने अपने गीतकार होने को अपनी ही पंक्तियों में सिद्ध किया–
आत्मा के सौंदर्य का
शब्द रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है
कवि होना सौभाग्य।