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भोला नाथ मिश्र-(सोनभद्र)

सोनभद्र। सोनांचल के ही नहीं अपितु पूर्वांचल के प्रतिष्ठित पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी मेरे लिए सहोदर जेष्ठ भ्राता के समान हैं तो उनकी जीवन संगिनी रहीं पार्वती द्विवेदी मेरे लिये माँ के समान भाभी थीं।15 अप्रैल 2021, नवरात्र का पावन पर्व, गुरुवार का दिन हम सब के लिए शुभ नही था। मोक्ष नगरी काशी में हम सभी को छोड़ कर वे पञ्च तत्व से बने शरीर को त्याग कर परमधाम के लिए प्रस्थान कर गई। उनका इस तरह अचानक जाना सभी को खल गया था। कुछ मसलहतन कुछ मजबूरन उनके अंतिम संस्कार में मणिकर्णिका घाट पर उनके अंतिम दर्शन को भयाक्रांत कोरोना संक्रमण के समय कुछ नामचीन पत्रकारों, साहित्यकारो और उनके परिजनों को छोड़कर अधिकांश लोग काशीपुराधिपति की पवित्र नगरी नही पहुंच पाए थे। वही उनके पतिदेव पत्रकारों के चाचाजी के नाम से विख्यात मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी अपनी जीवन संगिनी के बिछड़ने के किसी गम को बाहर नहीं आने देते। हंसते मुस्कुराते अपने भरे पूरे परिवार में बिंदास जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन पता नही क्यों जब-जब मैं बारीकी से देखता हूँ तो लाख छुपाने के बाद भी किसी की तलाश करती आँखे बहुत कुछ बयां कर देती हैं। किसी राह पे किसी मोड़ पर, कहीं चल न देना तुम छोड़कर,मेरे हमसफ़र ,मेरे हमसफ़र ..’
वजह ‘जनम जनम का साथ था
निभाने को’ बड़े भइया मिथिलेश द्विवेदी का भाभी जी के प्रति प्रगाढ़ प्रेम की बानगी कई बार मैंने
देखा है। दरअसल प्रेम की कोई एक स्थायी परिभाषा कभी बनी ही नहीं । यह सम्भवतः चंद मखमली शब्दों में लिपटी गुदगुदाती ,नर्म कोमल अनुभूति हैं। एकाकी उदास रातों में अनगिनत तारे गिनती, स्मृतियों के ऊँचे पहाड़ों के पीछे डूबती साँझ है। ऐसे अनगिनत नमूनों में एक यह भी है, जब बड़े भाई
साहब कहते थे अरे..आर चाय काफी कुछ पिलाओ।

( कभी नागा नही गया)

मीडिया फोरम ऑफ इंडिया न्यास के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सोन साहित्य संगम के निदेशक मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी जी से मिलने जब भी मैं उनके जेष्ठ पुत्र के आवास रॉबर्ट्सगंज, अखाड़ा मुहाल गया माई जइसन भउजी हमार ‘कुछ न कुछ खाने के लिए अवश्य देती थी। मना करने के बाद भी वे बिना कुछ खिलाये नही
आने देती थी। (भरा पुरा परिवार)

एक खुशहाल सुशिक्षित संस्कारित परिवार छोड़ कर सनातन संस्कृति की उपासक और सफल गृहलक्ष्मी पार्वती भाभी जी गई हैं, जिसके कारण बड़े भाई मिथिलेश द्विवेदी सब कुछ भूले हुए पोते पोतियों , बेटों- बहुओं , बेटियों दामादों व नाती नतिनियो के स्नेह प्रेम वात्सल्य में घुले मिले एक आनंद की खुशहाल मस्त जिंदगी न केवल जी रहे है बल्कि दूसरों के लिए उदाहरण भी बने हुए हैं । (मिलिए इन लोगों से)

प्रयागराज में एक निजी संस्थान में नौकरी कर रहे हैं बडे पुत्र दुर्गेश आनंद द्विवेदी जी अपनी धर्मपत्नी किरन द्विवेदी के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। छोटे पुत्र श्रृंगेश आनंद द्विवेदी
अपनी जीवन संगिनी अंजू द्विवेदी जी संग काशी में एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। पूज्य संत ब्रह्मर्षि योगिराज देवरहा बाबा के आशीर्वाद का ही परिणाम है कि एक पुत्र तीर्थ राज प्रयाग में तो दूसरा पुत्र देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में प्रवास कर रहे हैं। बेटियों में विजय लक्ष्मी , राज लक्ष्मी , सुनीता व मोहिता सुसंस्कार के साथ दोनों कुलों का नाम रौशन
कर रही हैं। दामाद के रूप में पुत्र की ही तरह अशोक कुमार पाण्डेय , राधेश्याम चौबे, प्रमोद कुमार दुबे और
मनोज तिवारी एक सफल गृहस्थ जीवन जी रहे हैं ।

(पोते- पोती , नाती- नतिनी)

बड़े भाई मिथिलेश द्विवेदी जी के साथ खेलने वाले — पोते- आयुष्मान आनंद, अंश आनंद , पोती– अनुष्का आनंद ,व आर्या आनंद हैं तो बेटियों के पक्ष से नाती – सौरभ पाण्डेय , अखिलेश चौबे , गौरवदीप , अभिनव कुमार व आदर्श तिवारी हैं। नतिनियो में–पूजा , निशा ,अनसिमा व एलिशा हैं।

(प्रणय बंधन)

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की तेनुहारी तृतीय, चुरेब गांव की पार्वती जी का विवाह गोरखपुर जिले के भंडारों, जगतबेला गांव के मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी जी से 21 मई ,1963 को हुआ था और 1965 में गवना हुआ था। इस प्रकार तकरीबन 57 वर्षों तक जीवनसंगिनी के रूप में परस्पर प्रेम और सुखद एवं स्वस्थ जीवन का आनंद बिखरती हुई 15 अप्रैल 2021 को सदा सदा के लिए परमपिता परमेश्वर की चरणों में कूच कर गई। रब ने बनाई थी जोड़ी ..........................

एक पुरानी मूवी का गीत याद आ रहा है खुदा भी जब जमीं पर देखता होगा, मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा ‘ 74 साल की उम्र में बड़े भाई और सोनांचल के पत्रकारों के चाचाजी मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी जितने हैंडसम आज भी है , उतनी ही सुंदर उनकी जीवन संगिनी पार्वती द्विवेदी भी थीं। ऐसी जोड़ी ईश्वर बहुत नशीब वालों को ही देते हैं। जो भी इन लोगों की तस्वीर देखेगा तो यहीं कहेगा, ‘जो बात तुझमें है वो तेरी तस्वीर में नहीं …’ ।
पता नही ऐसा क्यों लगता है
जैसे भाभी जी भइया से कह
रही हो कि, ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे’
… जी हाँ ! माँ की ममतामयी स्नेह छोह देने वाली दक्ष गृहिणी को कोई कैसे भुला पाएगा । जब जब आप की याद आती है आपके स्नेह सामने हांथ जोड़ के खड़े हो जाते हैं।
‘लिखने जो बैठ , रात कहानी
आप के पयान की ,अल्फ़ाज़
भी खड़े थे हांथ जोड़ जोड़ के’