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(सोनभद्र कार्यालय)

– शराब , गुटखा , पान पर नाका बंदी…
– गृहणियों को बड़ी राहत

सोनभद्र । कोरोना वायरस न आता , न तालाबंदी होती , न रिंकिया के पापा शराब से तौबा करते । लॉक- डाउन का ही कमाल है कि पिंकी के बाबा का गुटखा , मनभरन का पान ख़ा कर
जगह- जगह पिच्च- पिच्च थूंकना बंद हो गया है । प्रधानमंत्री कोरोना विषाणु जनित महामारी से बचने के लिए लॉक-डाउन पार्ट टू लागू न किए होते तो क्या संदीप के पाप की सुपाड़ी – सरौता बंद रहता । पाबंदी का ही नतीजा है कि मंगरु के ताऊ बिना
दारू पाई कैसे शांति पूर्वक रह रहे
हैं। यह सब बातें रविवार को ग्रामीण क्षेत्र की गृहिणियों नें हालचाल जानने गए संवाददाता से कहीं। सबसे ज़्यादा महिलाएं
इस बात से खुश है कि दारू , शराब की दुकानें बंद रहने से मर्द मजबूरन घर में शांतिपूर्ण ढंग से
रह रहे है।

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रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक क्षेत्र के
हिंदुहारी गाँव की सावित्री परचून
की दुकान पर मिल गई। लाइसेंस
प्राप्त रमेश की परचून की दुकान
के सामने बने नीले रंग के गोले में
चौथे नम्बर पर खड़ी अपनी बारी
के इंतज़ार में खड़ी थी। चर्चा चली तो कहने लगी भईया इस समय हमारे मुहल्ले में बड़ी शांति
है। न कोई शराब पी कर उधम
मचा रहा है न ही किसी के घर झगड़ा ही सुनाई दे रहा है। बभनौली कलां ग्राम पंचायत के प्रतिष्ठित कृषक पेशे से सेलटैक्स , इनकम टैक्स के
वकील विजय शंकर त्रिपाठी ने
बड़े पते को बात कही। बताया
की जब वे उदय प्रताप पीजी
कालेज वाराणसी से बीएससी
कर रहे थे तभी पान- सुपाड़ी खाने की आदत लग गई थी। बहुत कोशिश की लेकिन आदत
छूट नही रही थी। अब सब बंद
चल रहा है। बुरी आदत अपने
आप छूट गई। अमोखर गाँव के गिरिजेश
रामनरेश -रामबिलास इण्टर कालेज के प्रबंधक हैं । उन्होंने बताया कि उनके कालेज की कई
छात्र-छत्राएँ इस बात से बेहद सन्तुष्ट है कि कम से कम उनके घर में न कोई शराब पी कर उत्पात मचा रहा है और न ही घर की महिलाओं को कोई अपमानित ही कर रहा है ।
केकराही बाज़ार में नीम के पेड़ के नीचे फड़ लगाकर रोज दो घण्टे तरकारी बेचती है । तकरीबन 9 बजे प्रातः उनसे मुलाकात हुई । बातचीत में रुचि
लेने की प्रवित्ति वाली सावित्री उम्र
के 55-60 बसंत देख चुकी लग रही थी । अख़बार वाला समझ कर विस्तार से नाम ले ले कर
एक सुखद परिणाम बताई । उनकी कही का सार यह है कि जो असम्भव था वह इस परिस्थिति में सम्भव हो गया है । रमवन्तिया की बेचारी की तो
किश्मत ही बदल गई । रमलखना
रोज दारू पी कर आता था । रोज
उसे बैल की तरह पीटता था । पूरे
मुहल्ले वाले उसकी दुर्दशा देख कर परेशान रहते थे । किसी का कोई बस नही था । रमलखना से
सभी परेशान थे । लेकिन वही
रमलखना अब रमलखना हो गया
है । आटा , दाल , आलू , तेल , मशाल का पैकेट मिल जाता है । राशन की दुकान से राशन मिल
जा रहा है । अब रोज आम के
पेड़ के नीचे खटिया पर बैठ कर
अपनी दो साल की बिटिया को
खेलाता रहता है’..’ मेरा नाम करेगी रौशन , जग में मेरी बुटुली
प्यारी ‘ ।
पसही गांव की मंतोरा , बुधनी , अनारो , धनसिरिया ,
सिताबी , बिफन्न , अतवारी आदि
का कहना है , ‘ न रही बांस न
बाज़ी बसुरी ‘ । शराब , दारू , गुटखा , पान बंद रहे वही अच्छा है । अब आदमी के तरह मनसेधू
घर में रह रहे है । नशा-पत्ती करके लोग आते थे । रात भर परेशान हम लोगो को तो करते ही
थे लेकिन पास पड़ोस के लोग भी
परेशान रहते थे । अब न कुकुरा
भूंकत बा , न शियरा जागत बा ‘ ।
शराब , गांजा , भांग , गुटखा , पान , सुपाड़ी खाने के आदि रहे रामप्यारे , दुलारे , हरिचरन , कन्हइया , लुकावन , झोकन आदि के अनुभव प्रेरक और अनुकरणीय है । दुलारे भाई
अपने ज़माने के कक्षा दो तक पढ़े
हैं । उनके सहपाठी डॉक्टर साहब
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से दो साल पहले रिटायर हो गए । मोची का काम करने वाले दुलारे उर्फ
झोटल ने सामने खड़े लड़कों से
बताया कि गलत आदत , न पढ़ने
का नतीजा है कि देखों के मास्टर
साहब पत्रकार है और मैं यहाँ जूता पोछ रहा हूँ ।
बड़ा अच्छा लगा जब लोगों
ने एक स्वर से कहा कि कोरोना
वायरस से अभी तीन मई के बाद
क्या होने वाला है यह तो बाद में
पता चलेगा लेकिन एक बात साफ है कि ‘ लॉक-डाउन ‘ न हुआ होता तो हम लोगों की ए
बुरी आदतों पर लॉक-डाउन न
हुआ होता । सुखद आश्चर्य हुआ कि तालाबंदी के दौरान किसी भी
ग्रामीण को ‘ लॉक- डाउन ‘
‘ सेल्फ आइसोलेशन ‘ ‘क्वारन्टीन ‘ ‘फ़िजिकल डिस्टेंसिंग ‘ आदि शब्दों का मतलब समझाने की नौबत नही आई । जबार के चर्चित बेवड़ा रहे रामसूरत खैरवार एक दम बदल
गए हैं । कुछ मजबूरन कुछ मसलहतन भी । अपने ज़माने के मिडिल पास प्रौढ़ श्री खैरवार के सूखे होठो और उदास आँखे बहुत
कुछ कह गई । हरिबंश राय बच्चन की रुबाई सुनाकर उन्होंने आसमान की तरफ हसरत भरी नजरों से देख कर कहा , .
” इस पार , प्रिये मधु है ,
तुम हो , उस पार न जाने क्या होगा ?

इनसेट में
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मनोवैज्ञानिक डॉक्टर अरुण कांत देव जो दिल्ली में एक कंपनी में महाप्रबंधक है ने फोन से पूछने पर बताया कि तकरीबन 32 दिन से लोग घरों में ही रह रहे है इसलिए उनमें चीड़ चिड़ा पन आ जाता है । ऐसे में परिवार के साथ सहजता आवश्क हो जाती
है। अन्यथा की स्थिति में पारिवारिक हिंसा की संभावना बढ़ जाती है। लोग कल्पना लोक
में पैनिक हो जाने के लिए प्रेरित होते हैं। एक कल्पना लोक बना लेते हैं जो उन्हें भयाक्रांत करने
लगता है। इसके लिए आसान तरीका है। अपनी दिनचर्या को नियमित करें। व्यायाम , पसंद के
अनुसार परिवार में चर्चा , भजन , पढ़ना आदि करने से मन का पठार दूर हो जाता है । खाश कर
बड़े उम्र के लोग अधिक डर ते हैं ।दृढ़ इच्छा शक्ति जरूरी है ।

ज्ञात हो डॉक्टर पाण्डेय
सोनभद्र जिले के बभनौली कलां
ग्रामपंचायत के निवासी है और
वाराणसी से ही मनोविज्ञान में
डॉक्टरेट किए हुए हैं।