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दुद्धी, सोनभद्र। माहे रमजान शराफत और बुज़ुर्गी का महीना है। रोजा अल्लाह की इबादतों में एक महबूब इबादत है। इसलिए तो अल्लाह ने फरमाया कि हर नेक इबादत का बदला मैं फरिश्तों से दिलाता हूं लेकिन रोजे का सवाब (बदला) मैं खुद अता करूंगा। क्योंकि रोजा सिर्फ मेरे लिए है। दूसरी इबादतें तो आदमी दिखावे के लिए भी कर सकता है लेकिन दिखावे के लिए रोजा नहीं रख सकता। रमज़ान शरीफ के मुताल्लिक़ उक्त तकरीर दारुल उलूम कादरिया नूरिया मदरसा के मुदर्रिस हाजी कारी उस्मान साहब ने कही उन्होंने कहा कि रोजे की बरकत से दिल ईमान के नूर से जगमगाने लगता है। जिसकी वजह से इंसान के दिल में इबादत का शौक व जज्बा पैदा होता है। इबादत में दिल भी लगता है। उन्होंने फरमाया कि इस मुकद्दस माह में 30 दिन तक रखे जाने वाले रोजों का तफ्सील करते हुए बताया कि पहले 10 दिन के रोज़े अल्लाह पाक ने रहमत से भरे, दूसरे 10 दिन गुनाहों की बख्शीश व मगफिरत और आख़िरी 10 रोजे के दौरान जहन्नम से परवाना मिलने का वक्त मुकर्रर किया गया है। अल्लाह ताला ने इस बाबरकत महीने में हर नेकी व इबादत का सवाब आम दिनों की बनिस्बत कई गुना बढ़ाकर अता फ़रमाया है। नफ्ली इबादत करने वालों को फर्ज इबादत जैसा सवाब मिलता है। अल्लाह के रसूल ने इस महीने में चार चीजों के जिक्र करने का खास हुक्म फरमाया है। पहला ला इलाह इलल्लाह का कसरत। मतलब कि कलमा-ए-तैयब खूब पढ़ें। यह वह मुबारक कल्मा है जिसे सच्ची नियत व खुलास से पढ़ने वालों के लिए जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। दूसरा वह ज़िक्र जिसकी अल्लाह के रसूल ने ताकीद फरमाई है वह इस्तेगफार है। हदीस शरीफ में है कि जो आदमी इस्तेगफार करता है और अपने गुनाहों की माफी के लिए अस्तगफिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ले जाम्बिउँ व अतुबो इलैह पढ़ता रहता है, अल्लाह ताला उसकी हर मुश्किल आसान फरमा देता है। तीसरी चीज जन्नत की तलब और चौथी दोजख से पनाह मांगते रहना है। यह चारों चीजें रमजान के महीने की खास इबादतें हैं, जिसमें दुनियां और आखिरत की भलाई मौजूद है। उन्होंने यह भी बताया कि हदीस शरीफ में है कि रमजान शरीफ की बदौलत मुसलमानों को पांच ऐसी चीजें दी गई है जो पिछले किसी उम्मत को नहीं दी गई थी। पहली रोजेदार के मुंह की महक अल्लाह तआला को मुश्क व अम्बर से भी ज्यादा पसंद है। दूसरा रोजेदार के लिए दरिया की मछलियां भी दुआ करती है। तीसरा रोजेदार के लिए जन्नत रोजाना सँजाई संवारी जाती है। चौथा शैतानों को कैद कर दिया जाता है। पांचवा रमजान की आखिरी रात में बख्शीश की दुआ मांगने वाले रोजेदारों को बख्श दिया जाता है। अंत में कारी साहब ने इस महीने की कद्र करने और ज्यादा से ज्यादा नेकी करके अपनी आख़िरत संवारने की दुआ की।