– करै मास्टरी दो जून खाँय , लड़िका होइ नानीऔरे जाँय
(मिथिलेश व्दिवेदी/भोलानाथ मिश्र)
सोनभद्र। करै मास्टरी दो जून खायँ , लड़िका होयँ त नानीऔरे जाँय। यह पुरानी कहावत उस समय कही जाती थी जब मास्टरों का वेतन बहुत कम
हुआ करता था। यह गुजरे जमानें की बात सरकारी अध्यापकों के लिए तो हो गई। लेकिन स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों, वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालयों और नर्सरी तथा प्राइवेट पब्लिक व नर्सरी स्कूलों के शिक्षकों पर
पूरी तरह से लागू हो रही है। भारत में भी एक मई 1923 में मद्रास से मजदूर दिवस की शुरुआत हुए 97 साल गुज़र जाने के बाद भी सभी श्रमिको को आज भी उस हालात से गुजरना पड़ रहा है जिसे देख कर ही शायद बावला जी को कहना पड़ा
हो, ‘ भात खाँय नून से , उहौ नाही जून से, हाय रे ग़रीब तोर, बजरे क छाती ‘ ।
प्रदेश में तक़रीबन 18 हज़ार वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालयों के लगभग पाँच लाख शिक्षक नाम मात्र के मानदेय पर जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। लेकिन अब तक किसी भी सरकार, जनप्रीतिनिधि, जन नेता, मीडिया आदि ने इस विसंगति को
क्रमबद्ध तरीके से समाधान के दहलीज़ तक ले जाने की ज़हमत नही उठाई है। बिडंबना ही है कि
समान कार्य के लिए समान वेतन देने के सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के बावजूद भी ढाक के तीन पात की तरह ही प्रगति रही है लेकिन न तो कभी किसी न्यायलय ने संज्ञान लिया न ही किसी मानवाधिकार वादी संगठन ने लिया और न ही किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में ही यह कोई विषय है। इस जिले में लगभग 150 वित्तविहीन माध्यमिक, लगभग 250 हिन्दी- अँग्रेजी मीडियम, 300 नर्सरी और दर्जनों स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में 10 हज़ार अध्यापक, अध्यापिकाएं, शिक्षणेत्तर कर्मचारी जीवन निर्वाह से भी कम मानदेय पर सिसकती हुई जिंदगी गुजारने को मजबूर है लेकिन सिस्टम के सेहत पर कोई फ़र्क नही पड़ता वज़ह इन्हें कोई वोट बैंक नही मानता।
यह है विसंगति
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जिले में कुल 9 माध्यमिक विद्यालय ऐसे है जो तेहरी व्यवस्था से वेतन देते हैं । उदाहरण के लिए जनता इण्टर कालेज परासी पाण्डेय को ही
लें। आयोग से टीजीटी शिक्षक जो आए है, उनका वेतन लगभग 60 से 70 हज़ार के बीच प्रति माह है। इसी हाई स्कूल स्तर पर इसी विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक अभिभावक संघ से नियुक्त शिक्षक ढाई हज़ार प्रतिमाह पा रहे हैं । इसी कालेज
में इण्टर की कक्षाओं में पढ़ाने वाले प्रवक्ता मानकी वर्ग में पाँच हज़ार रुपए प्रतिमाह और इसी
स्कूल में इण्टर वैज्ञानिक वर्ग में पढ़ाने वाले गणित , फिजिक्स , केमेस्ट्री , बायोलॉजी के प्रवक्ता
10 हज़ार रुपए प्रतिमाह मानदेय
पा रहे हैं। यह एक कॉलेज का उदाहरण
भर है। थोड़ा ऊपर- नीचे कमोबेस जिले के हर वित्तविहीन विद्यालयों में शिक्षकों को इतने पर
ही गुजारा करना पड़ रहा है। स्व वित्तपोषित महाविद्यालयों में भी असिस्टेंट, एसोसिएट प्राध्यापक पाँच से लेकर दस हज़ार रुपए माह वेतन पा कर मौन धारण करने को मजबूर है।
नर्सरी स्कूल और बेहज
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” उ का जानइ पीर पराई ,
जेक पाँव न फ़टी बेवाई ‘ ।
कठिन करेजा होता है, नर्सरी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचरों का। बंधुआ मजदूरों से भी गई- गुज़री
जिंदगी गुजारनी पड़ रही हैं। कुँआरी स्नातक-परास्नातक लड़कियां और लड़के दो हज़ार से
लेकर पाँच हज़ार रुपए महीने पर पसीना बहा रहे है । पिपरी का लेबर ऑफिस धान की रोपाई के
समय तो गावँ- गिरांव में तो झारखण्ड से आए मजदूरों से पूछ ताछ करता है। पता लगाता है कि मानक के अनुसार किसान श्रमिक को मज़दूरी दे रहे है कि नही लेकिन दड़बे नुमा कक्षा कक्ष
में बिना पंखे वाले कमरे में अगस्त के महीने में पसीने से सराबोर शिक्षक से कभी लेबर महकमा यह नही पूछने आया कि आप को कितना मिलता है।
भेदभाव के शिकार
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जिलाविद्यालय निरीक्षक कार्यालय से हर सही समय पर भेद-भाव किया जाता है। सबसे
अधिक काम कर केसबसे कम मज़दूरी पाने वाले वित्तविहीन शिक्षकों को किसी महत्वपूर्ण काम में ड्यूटी नहीं लगाई जाती । मसलन टी ई टी की परीक्षा में कक्ष निरीक्षकों को 750 रुपए प्रति मीटिंग पारिश्रमिक मिलता है । दोनों पाली में ड्यूटी लगी तो 1500 रुपए एक दिन में मिल जाता है। इस से वित्तविहीन शिक्षक वंचित कर दिए जाते है ।
बहुत से तर्क कमलेश यादव, अब्बुलेश के पास रहता है। यह बात अलग है कि 6 वित्तविहीन ऐसे विद्यालय है जहाँ टी ई टी के परीक्षा केंद्र रहते हैं । वहाँ जिलाविद्यालय निरीक्षक कार्यालय का क्या मानक रहता है, भगवान जानें ।
यूपी बोर्ड की उत्तर-पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में स्थानीय आधार पर डिप्टी हेड की नियुक्ति में सहायक उप नियंत्रक पहली प्राथमिकता राजकीय आउट वेतन वितरण के शिक्षकों को ही देना पसंद करते हैं ।
अपमानजनक स्थिति
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जिले की शिक्षा में वर्ण-व्यवस्था लागू है जिसे कड़ाई से सभी मानते आ रहे हैं । प्रथम श्रेणी में
राजकीय शिक्षक , कर्मचारी , जिलाविद्यालय निरीक्षक कार्यालय के कर्मी आते हैं । दूसरा
स्तर वेतन वितरण के दो इण्टर कालेज और सात हाई स्कूल स्तर के वेतन वितरण के मिले- जुले
इण्टर कालेज जी आधा वेतन वितरण के और आधा वित्तविहीन की श्रेणी में हैं । तीसरे दर्जे के जानी मानी संस्थाओं के पब्लिक वित्तविहीन स्कूल हैं जहाँ जिलाविद्यालय निरीक्षक भी अपने को असहाय पाते हैं। चौथे पायदान पर शुद्ध रूप से वित्तविहीन शिक्षक हैं। इनमें भी अब पांचवी श्रेणी मानविकी वर्ग की बना दी गई है। विज्ञान वर्ग के
वित्तविहीन शिक्षकों को प्रबंधक मानविकी वर्ग के शिक्षकों से कुछ ज्यादा मानदेय देते हैं।
न्याय की गुहार
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प्राकृतिक न्याय से बंचित हजारों की सँख्या में अध्यापक-अध्यापिकाएं , शिक्षणेत्तर कर्मचारी शासन -प्रशासन , राजनीतिक दलों और जन प्रतिनिधियों से गुहार लगा रहे है कि समान काम के लिए समान वेतन का नियम लागू किया जाय।
इनसेट ‘
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कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो वित्तविहीन कक्षाओं में पढ़ाने वाले अधिकांश शिक्षक
वेल क्वालिफाइड हैं। एम एससी
बीएड , टी ई टी , सी टेट , नेट तक उतीर्ण है । डॉक्टरेट किए लोग पढ़ा रहे हैं। एम ए बीएड , एम काम बीएड ,आदि शिक्षक है। महाविद्यालयों में पीएचडी , नेट , जेआर एफ पास दक्ष प्राध्यापक हैं। नर्सरी में भी फोर फर्स्टक्लास लड़के-,लड़कियाँ
परास्नातक प्रक्षिक्षित है जी सिसकती हुई जिंदगी जी रहे है। इन्हें इंतज़ार है किसी मुक्ति दाता की ।