● देखा- देखी गलत रिवाजों से बर्बाद हो रहे परिवार !
(मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी/भोलानाथ मिश्र)
सोनभद्र। बेटी का बाप होना कितना अभिशाप बनता जा रहा है, ये बात समझने के लिए स्वयं को और अपने आस पास हो रहे फिजूलखर्ची को देखा जा सकता है ।
कुछ नई परंपरा के अनुसरण में अनेक परिवहन कर्ज में डूब गए, कइयों की ज़मीन तो कुछ का मकान बिक गया , लेकिन नई- नई फिजूल खर्ची वाली परम्पराएं दिन प्रतिदिन कुकुर मुत्ते की तरह हर वर्ष पनप कर रूढ बनती जा रहीं हैं जिसके कारण आर्थिक तबाही से लोग बेहाल होकर हलाल होते जा रहे हैं ।
‘ नए -नए रिवाज ‘
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रिंग सेरेमनी, सगाई, गोद- भराई, जयमाल, रिसेप्शन
हनीमून और बर्थडे पार्टी समेत अनेक ऐसे- ऐसे रिवाज
पनप कर होटल और मैरिज हाल में संपादित होते जा रहे हैं, जिसके कारण सोनांचल के अनेक परिवार आर्थिक दृष्टि से तबाह हो गए और आगे भी होते जा रहे हैं ।
बैशाख माह के शुक्ल
पक्ष की अक्षयतृतीया और परशुराम जयंती व ईद के पर्व पर मंगलवार को कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए है जिन्हें न केवल आप को
जानना चाहिए बल्कि ऐसी दिखावटी व गैर जरूरी रिवाजों पर रोक लगाने के बारे में भी गंभीरता से सोचना चाहिए ।
केस -1
……………….जनपद के मनफेर पंडित की बेटी अर्चना बी फार्मा है । एक होटल में उसकी रिंग सेरेमनी में लगभग 10 लाख पंडित जी को खर्च करना पड़ा । उन्होंने गांव में दस विश्वा जमीन बेच कर इस नए रिवाज को पूरा किया। केस -2 ........
सोनांचल के ही अरविंद पटेल की बेटी प्राइमरी स्कूल में टीचर है । लड़के वालों के आग्रह पर एक बड़े होटल में गोद भराई कार्यक्रम में उनके लाखों रुपए खर्च हो गए ।
ओके कार्यक्रम के लिए उन्हें रॉबर्ट्सगंज में दो विश्वा जमीन बेचनी पड़ी और बैंक से ग्रीन कार्ड से कर्ज भी लेना पड़ा ।
केस -3
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जिला मुख्यालय से सटे एक संभ्रांत परिवार की परास्नातक बेटी के विवाह में लड़के वालों की शर्त थी कि विवाह में जयमाल के लिए घूमने वाला मंच चाहिये ,
नामचीन फोटोग्राफर की फोटोग्राफी व उसी व्यक्ति के द्वारा वीडियो ग्राफी होनी चाहिए । इन सब के लिए लड़की के भाई को अपनी नई दुकान बेचनी पड़ी । इतना ही नहीं एक भैंस बिकी और माँ की सोने की दो भर की हंसुली बेच कर उन्हें परंपरा निभानी पड़ी ।
केस -4
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अजय कुमार की क्लर्क बेटी के पिता को वाराणसी के एक महंगे होटल से विवाह करने के लिये लड़के वालों ने मजबूर किया । 24 सौ रुपये प्रति प्लेट भोजन के कारण एक तो कई गरीब नजदीकी रिश्तेदारों को बुलाया ही नही गया दूसरे कुछ सगे लोग जब देर से पहुंचे तो होटल वाले ने प्लेट पूरा हो चुका है कह कर भोजन कराने से इनकार कर दिया । यह सब करने में तीन बिगहा धान का खेत रेहन रखना पड़ा और ट्रैक्टर- ट्राली एवं एक बोलेरो बेचनी पड़ी।
रिशेप्शन
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विनय की हाल ही में सरकारी कर्मचारी के पद पर नियुक्ति हुई हैं । विवाह के बाद दबाव में बेटे के बाप बैजनाथ को एक होटल
में रिसेप्शन दावत देने में बैंक
से लोन लेना पड़ा है । ऐसी फिजूल खर्ची क्यों! ...............................
नाम न छपाने की शर्त पर कई अन्य लोगों की कही हुई बात के सारांश पर हम भी गौर करें और आप भी सोचें ।
कहने का तात्पर्य यह है कि लड़की – लड़का देखने के बाद किसी होटल के बदले अपने घर से ही सगाई करने में क्या हर्ज है ! हम सब नई नई परंपरा को जन्म देकर कर्ज में क्यों डूब रहे हैं इस पर गहन चिंतन मंथन करने की जरूरत है।
–जब गांव में बहुतायत लोगों का बड़ा घर व सहन है तो हम अपने घर से उपरोक्त आयोजनों को क्यों नहीं कर सकते!
— लड़की – लड़का देखने के बाद किसी होटल के बदले अपने घर से ही सगाई करने में क्या हर्ज है !
–जब गांव में बड़ा घर व सहन है तो फिर बड़े शहरों में जा कर किसी महंगे स्थान से विवाह क्यों ?
–लड़की देखने के बाद जब मंडप में मुँह ढक कर विवाह होना है और जिस लड़की की पूरा परिवार देख कर विवाह कर रहा है उसी लडक़ी के जयमाल पर लाखों खर्च करने व आशीर्वाद के
नाम पर घण्टों समय बर्बाद करने की क्या जरूरत है ?
कौन देखता है विवाह का कैसेट और सैकड़ो फोटोग्राफ घर पर बहू भोज क्यो नहीं हो सकता ? इन सभी विचारणीय प्रश्नों पर हमें आपको गंभीरता से सोचने की जरूरत है। आइए, हम सब नई परंपरा का अनुसरण कर अपनी आर्थिक विपन्नता झेलने से बचने के लिए गंभीरता से मनन कर उस पर अंकुश लगाने का प्रयास करें। ताकि हम और हम सभी का परिवार कर्ज में डूबने और आर्थिक विपन्नता की मार झेलने से बच सकें।