सोनभद्र-: आदिवासी कला अकादमी की हो स्थापना: दीपक कुमार केसरवानी

 सोनभद्र-: आदिवासी कला अकादमी की हो स्थापना: दीपक कुमार केसरवानी

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सोनभद्र ब्यूरो कार्यालय

रॉबर्ट्सगंज (सोनभद्र)। आदिवासी साहित्य, कला, संस्कृति, पर्यटन के क्षेत्र में अनवरत रूप से कार्यरत विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन राजा बलदेव दास बिरला इंटरमीडिएट कॉलेज सोनघाटी पटवध सलखन में किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ट्रस्ट के निदेशक दीपक कुमार केसरवानी अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-“सोनभद्र में प्रथम बार पधारे महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा आदिवासी संस्कृति, साहित्य, कला के संरक्षण संवर्धन एवं विकास की बात कही गई देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा आदिवासियों के चतुर्मुखी विकास के लिए तमाम योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है ऐसी स्थिति मे केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा आदिवासी संस्कृति, साहित्य, कला पर शोध कार्य हेतु आदिवासी कला अकादमी की स्थापना कर आदिवासी संस्कृति, साहित्य, कला को बढ़ावा देने का कार्य किया जाना चाहिए। ताकि आदिवासी संस्कृति का संरक्षण एवं विकास हो सके और इन विषयों पर शोधार्थियों द्वारा कार्य किया जा सके।
कार्यक्रम में अपना विचार व्यक्त करते हुए सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के प्रदेश मंत्री आत्मानंद मिश्र ने कहा कि-“सोसायटी द्वारा आदिवासियों शिक्षण कार्य हेतु देश भर में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गई और शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से आदिवासियों में शिक्षा की ज्योति जलाई गई। सोसाइटी के कार्यों का यह परिणाम यह हुआ कि सोनभद्र जैसे भौगोलिक जटिलताओं वाले जनपद के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में शिक्षण संस्थान की स्थापना और उसका विकास हुआ । इन शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त कर आदिवासी छात्र अनेकों उच्च पद पर आसीन हुए।
राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से पुरस्कृत एवं राजा बलदेव दास बिरला इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य, रंगकर्मी हरिशंकर शुक्ला ने कहा कि-” आदिवासी अंचलों में रहने वाले लोग आज भी विकास से कोसों दूर है और इन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिए सोसायटी,संगोष्ठी, विचार गोष्ठी, जागरूकता के माध्यम से गांव में घर-घर तक संदेश पहुंचा कर शिक्षण कार्य के लिए प्रेरित किया गया और कठपुतली कला के माध्यम से भी मनोवैज्ञानिक एवं मनोरंजनपूर्ण तरीके से अभिभावकों एवं बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया और इसका यह परिणाम रहा कि आज सोनभद्र जैसे दुरुह, जंगली इलाके के हर गांव में कुछ न कुछ शिक्षित, साक्षर लोग निश्चित रूप से मिल जाएंगे।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से नृत्य के संदर्भ में रीतिकालीन काव्यों का अध्ययन विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर चुकी, यूजीसी द्वारा प्राप्त रिसर्च फैलोशिप के माध्यम से उत्तर प्रदेश के लोक नृत्य जातीय, जनजाति का दृश्यात्मक मुद्रण विषय पर शोध कार्य कर रही, रीतिकालीन काव्यों का अध्ययन नामक पुस्तक की लेखिका, अभिनेत्री एवं सुर सिंगारमणि की उपाधि से विभूषित डॉक्टर श्वेता चौधरी ने कहा कि- प्रदेश के आदिवासी, गैर आदिवासी जातियों में प्रचलित लोक नृत्य, संस्कृति को समाज के दृश्य पटल पर लाने और उसमें कलात्मक, सांस्कृतिक परिवर्तनों की बारीकियों समझने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान समय में संपूर्ण उत्तर प्रदेश के लोक संस्कृति और लोक नृत्य पर कार्य किया जा रहा है।
संगोष्ठी में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि आदिवासी कला की स्थापना हेतु ट्रस्ट के माध्यम से केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार को पत्र प्रेषित किया जाएगा।
संगोष्ठी में आदिवासी कलाकार स्थानीय प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित रहे कार्यक्रम का सफल संचालन शिक्षिका तृप्ति केसरवानी द्वारा किया गया।


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