सोनभद्र-: ख्याल नेक अमल जोगियों के ध्यान सा है, वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी जी का व्यक्तित्व

 सोनभद्र-: ख्याल नेक अमल जोगियों के ध्यान सा है, वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी जी का व्यक्तित्व

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भोलानाथ मिश्र की कलम से

सोनभद्र । “अजीब शख़्स है दुनियां को कुछ पता ही नहीं, ख़्याल नेक,अमल जोगियों के ध्यान सा है”
मैं जिस अज़ीम क़लमकार की बात कर रहा हूँ ,वह जनपद के सबसे फ़िट और हैंडसम आज भी उतने ही हैं जितने जवानी के दिनों में हुआ करते थे ।
अपनी सादगी , सरलता ,सहजता और साफ सुथरी पत्रकारिता से “लिजेण्ड” बन चुके वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी की लिखी स्टोरी दिल को छूती ही नहीं , दिल मे उतर भी जाती है । इनका मिज़ाज सूफ़ियाना है ।इनका गम अपना न होकर ज़माने का दर्द बनकर अख़बार के पन्ने पर उतरता है तो हुक्मरानों की बन्द पलकें खुलने में तनिक भी देर करना मुनासिब नही समझती।
श्री द्विवेदी आम लोगो के मसले उठाते हुए कब सधी हुई टिप्पड़ी से पते की बात कह जाते है क़ायदे से समझने पर समझ में आता है।
सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा करने वाली जीवन संगिनी पार्वती देवी (हमारी माँ के समान भाभी जी) आज से कोई साढे तीन माह पूर्व 15 अप्रैल 2021 को अचानक बहिश्त के
लिए कूच कर गई । इस गम को भी भुला कर 73 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश द्विवेदी आज भी एक तरफ पत्रकारों की अखिल भारतीय संस्था ‘मीडिया फोरम ऑफ इण्डिया’ (ट्रस्ट) के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के दायित्व का तो निर्वहन कर ही रहे हैं, साथ ही ‘विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान’ प्रयागराज के सलाहकार सदस्य और सोन साहित्य संगम के निदेशक के रूप में भी हिंदी भाषा और साहित्य की सर्जना में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हुए सभी उचित अवसरों पर हम सभी के मार्गदर्शन के लिए तैयार रहते हैं । कभी उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम कर्मी रहे श्री द्विवेदी ‘मधु’ गोरखपुरी के नाम से रची रचनाओं में जीवन के यथार्थ को
बखूबी चित्रित किए हैं । ‘हाय ये प्रचंड धूप’ शीषर्क की रचना जमीनी हक़ीकत की शब्द चित्र है। यह सब मैं किस आधार से कह रहा हूँ ऐसा सोचना आप का बनता है । दरअसल एक अख़बार में मैं इनके मार्गदर्शन में फ़ीचर , गाँव गिराव , सरोकार , क्या कहते हैं आपके अधिकारी , अतीत के आईने में , सियासत नामा , ब्यक्तित्व आदि स्तम्भों में लिखता था । मुझे इंट्रो लिखने तब भी नहीं आता था और आज भी ठीक से नही आता है । आप यक़ीन मानिए बिना कुछ कहे बड़े भाई मिथिलेश द्विवेदी जी समाचार के इंट्रो को लिख
कर मेरे नाम से भेज देते थे । इतना ही नहीं हर समाचार का इंट्रो वही
लिखते थे, लेक़िन न कभी गुस्सा हुए। नही कभी यह साबित होने दिया कि भोलानाथ तुम्हें इंट्रो लिख़ने नहीं आता ।
ईश्वर की कृपा और कुदरत की देन कहिए इनकी खूब सुरती में 73 साल के बाद भी कोई फर्क नही दिखता ।इतना चुस्त दुरुस्त और ड्रेसिंग रहते है कि महफ़िल में अलग ही अंदाज़ में नजर आते है । अनुशासन में नम्बर वन रहकर अपने आचरण से हम सब को सन्देश देते रहते है । मेरे पत्रकारिता के गुरु स्मृति शेष महाबीर प्रसाद जालान अपने जीवन काल में जब भी प्रेस के दफ़्तर में क़दम ऱखते थे , सबसे पहले भाई साहब यानी श्री द्विवेदी जी ही खड़े हो कर अभिवादन करते थे तब हम सभी अनुश्रवण करते थे ।

प्रखर पत्रकार मिथिलेश द्विवेदी जी की उम्र थोड़ी औऱ ज़्यादा रही होती तो वे मेरे पिताजी की तरह होते । फिलहाल मैं अपनी बात को इस मुक़ाम पर यह कहते हुए विराम दे रहा हूँ कि
“खुली ज़मीन खुला आसमान रखता है ,
फ़क़ीर है ए मुक़म्मल ईमान रखता है “।
आज बड़े भाई अपने बड़े पुत्र दुर्गेश आनंद द्विवेदी, पुत्रवधू किरन द्विवेदी और पोते अंश आनंद द्विवेदी व पोती अनुषिका द्विवेदी के साथ बिहार के गोपालगंज में रहते हुए मोबाइल फोन से न केवल सोनभद्र से जुड़े रहते है, बल्कि यहाँ की खबरों के लेखन में भी अग्रेसर रहते है । युवा पत्रकारों के चाचा जी के रूप में प्रतिष्ठित वरिष्ठ
पत्रकार मिथिलेश द्विवेदी जी को ‘गणेश शंकर विद्यार्थी’ और ‘विष्णु राव पराड़कर’ मानद उपाधि समेत कई उपाधियां और अनेकानेक
सम्मान और पुरस्कार अब तक मिल चुके हैं । सोनभद्र के राबर्ट्सगंन नगर पालिका परिषद के वार्ड नंबर 16,
अखाड़ा मुहाल स्थित अपने बड़े पुत्र दुर्गेश आनंद द्विवेदी और पुत्र वधू किरन द्विवेदी के द्वारा बनवाए गए आवास
के इनके शयनकक्ष की रैक पुरस्कारों से अटी पड़ी है ।
इनके छोटे पुत्र श्रींगेश आनंद द्विवेदी छोटी पुत्रवधू अंजू द्विवेदी, पोता आयुष्मान आनंद द्विवेदी और पोती आर्या आनंद द्विवेदी काशी में एक निजी कंपनी में सेवारत है। श्री द्विवेदी जी के पिता स्मृति शेष रामकृपाल द्विवेदी महान कवि साहित्यकार एवं विश्व प्रसिद्ध संत योगिराज ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा के अनन्य भक्तों में शुमार थे जिन्हें बाबा जी ने राम कृपाल दास प्रपन्नाचार्य की उपाधि देकर गृहस्थ संत के रूप में जीवन जीने की अनुकंपा की थी। आज बड़े भाई मिथिलेश द्विवेदी जी जो कुछ भी है वह उन्हें उनके विद्वान व गृहस्थ संत पिताश्री राम कृपाल दास प्रपन्नाचार्य और विश्व प्रसिद्ध संत योगिराज देवरहा बाबा के असीम अनुकंपा से ही संभव हो सका है।


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