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संवाददाता- मुकेश सोनी
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।भारतीय परंपरा में गुरु का स्थान हमेशा से आगे रहा है। जहां तक 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस मनाए जाने की बात है तो भारत में यह खास दिन 1962 से मनाया जा रहा है। यह भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म की तारीख है, जिसे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्हें किताबें पढ़ने का शौक था। वह स्वामी विवेकानंद के विचारों से खासे प्रभावित थे। बताया जाता है कि भारत के राष्ट्रपति बनने पर उनके कुछ छात्र व मित्र उनसे मिलने पहुंचे और उनसे उनका जन्मदिन बनाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने अलग से इसे मनाने की बजाय 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद से ऐसा ही किया जा रहा है।इस बार कोरोना संक्रमण के बीच यह खास दिन मनाया जा रहा है। कोविड के मामलों में कमी को देखते हुए कई राज्यों में स्कूल खोले गए हैं और बच्चों ने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया है, लेकिन टीचर्स डे इस बार रविवार को है, जिस कारण स्टूडेंट्स अमूमन घरों में ही रहेंगे। इस दौरान स्टूडेंट वीडियो मैसेज व्हाट्सएप के द्वारा शिक्षकों का आभार प्रकट कर रहे हैं। सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षक थी। सावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए तब स्कूल खोले जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था।उनका महिलाओं की शिक्षा में अहम योगदान है। अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि 5 सितंबर का दिन डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में ही नहीं बल्कि शिक्षकों के प्रति सम्मान और लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना जगाने के लिए भी मनाया जाता है।