Loading

दशकों से काबिज बाशिंदों को आखिर क्यों की जा रही उजाड़ने की कोशिश

संवाददाता-विजय सोनी

बीजपुर/सोनभद्र। स्थानीय थाना क्षेत्र के बीजपुर बाजार के उत्तरी एवं दक्षिणी पटरी स्थित गाटा संख्या 1599,1579 एवं 1604 में बसे हजारों रहवासियों को वन विभाग द्वारा 25 सितम्बर से पहले अपनी दुकान,मकान आदि खाली करने हेतु शनिवार 23 सितम्बर को जगह जगह नोटिस चस्पा किया गया है अन्यथा  25 सितम्बर को सुबह 11 बजे बुलडोजर चलाकर ध्वस्त करने की कार्यवाई की जाएगी।वन कर्मियों द्वारा रविवार की सुबह जिन मकानों को ध्वस्त किया जाना है उस पर लाल निशान लगाकर चिन्हित भी कर दिया गया है वन विभाग द्वारा लाल निशान लगते ही ग्रामीणों में दहशत का माहौल है वन विभाग के इस फरमान का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है।रहवासियों ने क्षेत्रीय विधायक को पत्र लिखकर 40 वर्षो से रह रहे जमीन पर मालिकाना हक दिलाने की गुहार लगाई है।
विदित हो कि पूर्व में क्षेत्रीय वनाधिकारी रेंज जरहाँ राजेश कुमार सिंह ने दलबल के साथ 23 फरवरी को उत्तरी पटरी पर बसे व्यवसायियों को घर घर जाकर अल्टीमेटम दिया था कि 24 फरवरी सुबह 10 बजे तक सभी लोग अपना दुकान मकान खाली करके अपने अवैध निर्माण को स्वयं ध्वस्त कर दें अन्यथा 24 फरवरी को सुबह 11 बजे तक बुलडोजर चलाकर अवैध निर्माण को ध्वस्त करके ध्वस्त करने का हर्जाना खर्च भी सभी से वसूला जाएगा।उत्तरी पटरी पर बसे सभी रहवासियों से अपने-अपने जमीनों का कागज ले जाकर वन विभाग ऑफिस में जमा करने को भी कहा गया था। डरे सहने रहवासियों ने ज्यादातर लोगों ने अपने-अपने जमीनों का कागज भी ले जाकर वन विभाग कार्यालय में जमा किया था ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग ऑफिस में कागजात जमा करने के बावजूद भी अभी तक किसी को कोई सूचना नही दी गई कि किसका कागज सही है किसका गलत,किसका निर्माण वैध है और किसका अवैध।फिर अचानक नोटिस चस्पा करके लाल निशान लगा देने से ग्रामीण अपना वर्षो से बनाया हुआ आशियाना उजड़ने के डर से खौफजदा हैं।

उत्तरी पटरी पर बसे सैकड़ों रहवासी ,व्यवसायीयों एवं उनके परिजनों का कहना है कि हम लोग इस जमीन पर दशकों से रहते चले आ रहे हैं और अपनी छोटी मोटी दुकान करके अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं अगर वन विभाग हम लोगों को यहां से उजाड़ देगा तो हम लोग सड़क पर आ जाएंगे,आखिर हमारे परिवार तथा बच्चे कहां जाएंगे क्योंकि हमारे पास यहां के अतिरिक्त कहीं भी ना घर है ना रहने का ठिकाना आखिर हम अपने बच्चों को लेकर कहां जाएंगे हमारी रोजी रोटी कैसे चलेगी। जनचर्चा है कि उक्त जमीन में कौन सी और कितनी जमीन वन विभाग की है,कौन सी जमीन ग्राम पंचायत की है या कौन सी जमीन काश्त की है,अभी तक इसका कोई सीमांकन ही नही हुआ तो फिर वन विभाग अपनी जमीन बताकर नोटिस कैसे जारी कर सकता है जबकी उक्त जमीन पर कइयों केस मुकदमे न्यायालय में भी विचाराधीन है। यदि यह जमीन वन विभाग की है तो वन विभाग इतने दिनों तक कुंभकर्णी नींद में क्यों सोया रहा,गौरतलब है कि उत्तरी पटरी पर  ज्यादातर लोग 40 वर्षों से भी अधिक समय से रह रहे हैं और कुछ लोगों ने तो दो से तीन मंजिला तक इमारतें भी बना ली है अगर उक्त स्थान पर वन विभाग की जमीन थी तो विभाग ने इतने बड़े निर्माण को कैसे होने दिया, रोका क्यों नहीं अभी तक ? यह सवाल लोगों के बीच में जन चर्चा का विषय बना हुआ है। इन सब सवालों के जवाब के लिए जब प्रभागीय वनाधिकारी वन प्रभाग रेणुकूट से संपर्क किया गया तो उन्होंने व्यस्त होने का हवाला देकर सवालों का जवाब देने से किनारा कर लिया।ऐसे सवालो पर वन विभाग ,राजस्व विभाग एवं सभी संबंधित विभाग के उच्चाधिकारियों को ध्यान देकर उचित कार्यवाई करने की आवश्यकता है क्योकि मामला जनहित से जुड़ा हुआ है।
बहरहाल ध्वस्तीकरण की जद में आने वाले ग्रामीणों, व्यवसायियों ने जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी, सांसद, विधायक को भेजे गए प्रार्थना पत्र में मामले पर संज्ञान लेते हुए न्याय की गुहार लगाई है।